Saturday, 25 December 2021

चुनाव चुनाव चुनाव – विकास के लिये शाप या आशिर्वाद? एक देश एक चुनाव – क्यु नही?

चुनाव चुनाव चुनाव – विकास के लिये शाप या आशिर्वाद? एक देश एक चुनाव – क्यु नही?


जी हा, भारत मे आये दिन चुनावी महोल बना रेहता है । सुबह से शाम जब भी न्युझ-पेपर, सोशियल मिडीया या दोस्तो-परीवार के साथ हो, आये दीन चुनाव की ही बाते होती रहेती है । पुरे भारत मे जितने त्योहार मनाते नही होंगे, उतने तो चुनाव चल रहे होते है । भारत मे गाव के सरपंच से लेकर केन्द्र के प्रधानमंत्री तक करीब हर 5-साल मे 5-बार प्रत्यक्ष (सीधे जनता द्वारा) चुनाव होते है |

1- गाव के सरपंच का चुनाव
2- तालुका-जिल्ले का चुनाव
3- नगर-निगम शहर के चुनाव 
4- राज्यो के विधायक का चुनाव
5- देश के प्रधानमंत्री का चुनाव

ईन सभी चुनाव मे अपने नेता को जनता द्व्वारा चुना जाता है । मतलब 5-साल मे जनता पुरी तरह से राजकारण शिख लेती है । और ईसी कारण भारत मे हर छोटी-बडी घटना को (चाहे वो नोकरी-बिझनेश हो, या परीवार-दोस्तो के बिच कोई संवाद-वादविवाद हो) राजकारण घुस ही जाता है । आये दीन भारत मे हर अछ्छी-बुरी घटना को राजकारण से जोडा जाता है । 


और जब से कोरोना आया हे, हर चुनाव को कोरोना बढाने का कलंक लग रहा है । स्वाभाविक है की, चुनाव प्रचार और रेलीओ मे ज्यादा भीड ईक्ठा होती है । और यह महामारी अभी जल्द से जानेवाली नही है । सब जानते हे की, कोरोना की दुसरी लहर, जब पश्चिम बंगाल और अन्य दक्षिण भारत के चुनाव से जुडा गया । और सब से खतरनाक साबीत हुवा । ऐसी ही तिसरी लहर कोरोना-ओमिक्रोन दस्तक दे चुका हे । सावधान और सतर्क जनता को रहेना है । 

एक बात समज नही आ रही हे की, चुनावी रेली मे 99% जनता खरीद के लाइ जाती है, क्या च्ंद रुपयो की बजह से ईन भोली-भाली जनता को समज नही आता ही, महामारी चल रही हे, हमे रेली मे नही जाना चहिये ।
हमारा यहा, कह्ने का तात्पर्य यह है की, 

अगर ह्म हर साल गाव से लेकर देश तक चुनाव-चुनाव और सिर्फ चुनाव ही करते रहेंगे तो गाउ-शहर-देश का विकास कब करेंगे?
कब हमारे नेता और प्रतिनिधी को गाव-शहर-देश के लिये समय मिलेगा?
क्योकी आये दीन हमारे नेता और प्रतीनिधी चुनावी प्रकिया मे ही व्यस्त होते है ।
जब भी कोई सरपंच से लेकर सांसन्द को हमे मिलना हो, एक ही जवाब मिलता हे, “साहब, चुनाव मे बिझी है”, ऐसा क्यु?
हर वो बडा नेता अपना घर छोड कर निकल पडता हे, अन्य राज्य मे अपने प्रचार के लिये । अरे भाइ, तु पहले अपने घर को तो सम्भाल ! 

लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराये जाने के मसले पर लंबे समय से बहस चल रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस विचार का समर्थन कर इसे आगे बढ़ाया है। आपको बता दें कि इस मसले पर चुनाव आयोग, नीति आयोग, विधि आयोग और संविधान समीक्षा आयोग विचार कर चुके हैं। अभी हाल ही में विधि आयोग ने देश में एक साथ चुनाव कराये जाने के मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों, क्षेत्रीय पार्टियों और प्रशासनिक अधिकारियों की राय जानने के लिये तीन दिवसीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था। इस कॉन्फ्रेंस में कुछ राजनीतिक दलों ने इस विचार से सहमति जताई, जबकि ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया। उनका कहना है कि यह विचार लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ है। जाहिर है कि जब तक इस विचार पर आम राय नहीं बनती तब तक इसे धरातल पर उतारना संभव नहीं होगा।



एक देश एक चुनाव कोई अनूठा प्रयोग नहीं है, क्योंकि 1952, 1957, 1962, 1967 में ऐसा हो चुका है, जब लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ करवाए गए थे। यह क्रम तब टूटा जब 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएँ विभिन्न कारणों से समय से पहले भंग कर दी गई। आपको बता दें कि 1971 में लोकसभा चुनाव भी समय से पहले हो गए थे। जाहिर है जब इस प्रकार चुनाव पहले भी करवाए जा चुके हैं तो अब करवाने में क्या समस्या है।

जाहिर है लगातार चुनावों के कारण देश में बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू करनी पड़ती है| इसकी वजह से सरकार आवश्यक नीतिगत निर्णय नहीं ले पाती और विभिन्न योजनाओं को लागू करने समस्या आती है। इसके कारण विकास कार्य प्रभावित होते हैं। आपको बता दें कि आदर्श आचार संहिता या मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट चुनावों की निष्पक्षता बरकरार रखने के लिये बनाया गया है।

इसके पक्ष में एक और तर्क यह है कि एक साथ चुनाव कराने से सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों को बार-बार चुनावी ड्यूटी पर लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे उनका समय तो बचेगा ही और वे अपने कर्त्तव्यों का पालन भी सही तरीके से कर पायेंगे। आपको बता दें कि हमारे यहाँ चुनाव कराने के लिये शिक्षकों और सरकारी नौकरी करने वाले कर्मचारियों की सेवाएं ली जाती हैं, जिससे उनका कार्य प्रभावित होता है। इतना ही नहीं, निर्बाध चुनाव कराने के लिये भारी संख्या में पुलिस और सुरक्षा बलों की तैइसके अलावा बार-बार होने वाले चुनावों से आम जन-जीवन भी प्रभावित होता है।

एक देश एक चुनाव की अवधारणा में कोई बड़ी खामी नहीं है, किन्तु राजनीतिक पार्टियों द्वारा जिस तरह से इसका विरोध किया जा रहा है उससे लगता है कि इसे निकट भविष्य लागू कर पाना संभव नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत हर समय चुनावी चक्रव्यूह में घिरा हुआ नजर आता है। 

मोदीजी बोल चुके है, साढे चार साल (4.5 Years) काम करो और 6-महीने राजनीती करो । 

यदि देश में 'एक देश एक कर' यानी GST लागू हो सकता है तो एक देश एक चुनाव क्यों नहीं हो सकता? अब समय आ गया है कि सभी राजनीतिक दल खुले मन से इस मुद्दे पर बहस करें ताकि इसे जल्द से जल्द अमल मे ला सके।

1 comment:

LD School - Education Kit Distribution Program held on 4th Aug 2023

 LD School - Education Kit Distribution Program held on 4th Aug 2023